आजकल अक्सर कभी कभी मुझे यह महसूस होता है कि हमारे देश में कुछ व्यक्तिव ऐसे हैं जिनको उनके द्वारा किये गए महत्वपूर्ण कार्यो के लिए , स...
आजकल अक्सर कभी कभी मुझे यह महसूस होता है कि हमारे देश में कुछ व्यक्तिव ऐसे हैं जिनको उनके द्वारा किये गए महत्वपूर्ण कार्यो के लिए , समाज हित में किये गए कार्यो के लिए हमारे देश में उनको उतना मान सम्मान नही मिल पाता है ,जिसके योग्य वह है। किन्तु विदेशो में उनके कार्यो की न सिर्फ सरहाना की जाती है बल्कि उन्हे सम्मानित भी किया जाता है। हमारे देश का सिस्टम इतना राजनितिक हो चूका है कि यहाँ चुनाव , किसी अफसर पद पर चयन से लेकर सम्मान और पुरुस्कारों के लिए नामांकन में भी राजनीति होती है। इसका एक ताजा उदाहरण पुणे स्थित फिल्म संस्थान में अध्यक्ष पद हेतु अभिनेता गजेन्द्र चौहान जी को चुना गया , इसके पीछे भी राजनितिक कारण बताये जा रहे हैं।
खैर यह इस पोस्ट का मूल विषय नहीं है। दरसल अभी हाल ही में भारत और कई देशों में मत्स्य पालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ एम. विजय गुप्ता ( Dr Modadugu Vijay Gupta ) को नोबेल पुरस्कार के विकल्प के तौर पर देखे जा रहे पहले सुनहाक शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होने अपना यह पुरूस्कार किरिबाती के राष्ट्रपति Anote Tong के साथ शेयर किया है। किरिबाती एक द्वीपीय देश है।
76 साल के डॉ एम विजय गुप्ता जी को पुरूस्कार स्वरुप 10 लाख डॉलर की राशि प्रदान की गयी है। डॉ एम विजय गुप्ता जी को यह सम्मान छोटे द्वीपीय देशो में कार्बन उत्सर्जन को काम करने की दिशा में किये गए महत्वपूर्ण कार्यो के लिए दिया गया है। यह दीव बढ़ते समुंद्री जल स्तर के कारन 2050 तक डूबने जैसे खतरे का सामना कर रहा है। उनको यह पुरूस्कार दक्षिण कोरिया की धार्मिक नेता डॉ. हाक जा हान मून ने प्रदान किया। डॉ. हाक जा हान मून स्वर्गीय रेव सुन म्युंग मून जी की पत्नी हैं। जिन्होंने लोगों की भलाई के लिए, स्तर बेहतर बनाने हेतु कारगर प्रयास कर रहे लोगों के काम को मान्यता देने के लिए इस पुरस्कार की स्थापना की थी।
डॉ एम विजय गुप्ता जी मूल रूप से आंध्रः प्रदेश के बापतला के रहने वाले हैं और वह एक जीव वैज्ञानी है। उन्हे सन 2005 में मीठे पानी में मछलीपालन के लिए कम लागत की तकनीकों के विकास एवं प्रसार के लिए 2005 में विश्व खाद्य पुरस्कार भी दिया जा चूका है। नौकरी से रिटायरमेंट से पहले वह वर्ल्डफिश नाम के एक अंतरराष्ट्रीय मत्स्य पालन शोध संस्थान में सहायक महानिदेशक पद पर भी कार्य कर चुके हैं । यह संस्थान मलेशिया में पेनांग में स्थित "Consultative Group on International Agricultural Research "(CGIAR) के अंतर्गत आता है।
इस क्षेत्र में डॉ एम विजय गुप्ता जी ने अपने करियर की शुरुवात कोलकाता स्थित Indian Council Agriculture Research से एक वैज्ञानिक के तौर पर की थी। डॉ एम विजय गुप्ता जी लाओस , बांग्लादेश , वियतनाम , फिलीपींस , थाईलैंड आदि देशो में भी कार्य कर चुके हैं। डॉ एम विजय गुप्ता जी मुख्य रूप से एक्वा टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञ हैं। उनका कहना है कि एक्वा टेक्नोलॉजी खाद्य सुरक्षा हेतु एक अच्छा विकल्प है जो की ग्रामीण क्षेत्रो के लोगो के जीवन सुधार में भी सहायक है।
डॉ एम विजय गुप्ता जी अनेक देशो के विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के कृषि संस्थानों में कार्य कर चुके हैं। डॉ एम विजय गुप्ता जी ने बांग्लादेश में ग्रामीण क्षेत्रो में रह रहे लोगो को मछली पालन ( Fish Farming ) के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि उनके साथ लगकर इस हेतु कार्य भी किया एवं उन्हे इस फिश फार्मिंग के महत्वपूर्ण तरीको को भी सिखाया।
उनके अनुसार जब तक विश्व में खाद्य सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं होगे तब तक आप किसी भूखे व्यक्ति से शान्ति के बारे में बात नही कर सकते। खाद्य सुरक्षा एक आवश्यक विषय है जिस पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
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