जैविक खेती से जुड़े पिछले तीन अंको में जैविक खेती के परिचय , फसलो की सुरक्षा हेतु जैविक विधिया एवं जैविक खेती में गौमूत्र के उपयोग के बार...
जैविक खेती से जुड़े पिछले तीन अंको में जैविक खेती के परिचय , फसलो की सुरक्षा हेतु जैविक विधिया एवं जैविक खेती में गौमूत्र के उपयोग के बारे में जाना। जैविक खेती के इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज हम बात करेंगे जैविक खेती में नीम के उपयोग की।
" जैविक खेती में नीम का महत्त्व "
नीम एक गुणकारी वृक्ष मन जाता है। इसकी पत्तियों से और निमौली से लेकर , इसकी लकड़ी तक में अनेक गुण छिपे हुए हैं ,जो मानव शरीर के लिए लाभदायक हैं। नीम उत्पादकों का प्रयोग जैविक खेती में कीट पतंगों की रोकथाम के लिए भी किया जाता है। नीम से बने उत्पाद फसलो पर आने वाले जीव कीटो और सूत्रकृमीओ के लिए प्रतिकर्षी का कार्य करते हैं जो इनकी भोजन प्रक्रिया में बाधा उतपन्न करके इनपर नियंत्रण पाने में सहायक हैं। नीम उत्पादों के मौजूदगी के कारन ये कीट फसलो पर आक्रमण नही कर पाते।
कैसे करे खेती में नीम का उपयोग : जैविक खेती में नीम का उपयोग हम कुछ इस प्रकार से कर सकते हैं।
(1 ) नीम की 10 से 12 किलोग्राम पत्तियों को 200 लीटर पानी में भिगो कर रख दे जब पानी का रंग हरा और पीला सा होने लगे तो इसको निचोड़कर छान ले अब आप इस घोल का छड़काव फसलो पर करे इतना घोल एक एकड़ एरिया में इली की रोकथाम के लिए काफी है।
(2 ) नीम की कली एक अच्छे दीमक नियंत्रण का काम करती है . अगर बुआई से पहले खेत में 2 से 3 कुंतल पीसी हुयी नीम की कली मिला दी जाए तो इससे दीमक एवं कीट की रोकथाम के साथ साथ इसमें पाये जाने वाले फास्फोरस पोटाश जैसे तत्व पौधों के लिए लाभदायक हैं।
(3 ) 2 किलोग्राम नीम के निबौली को 10 लीटर पानी में डालकर 4 से 7 दिन तक रखे इसे छानकर 200 लीटर पानी में मिलकर फसलो पर छिड़काव करे इससे कीटो के रोकथाम में मदद मिलती है।
ऊपर बतायी गयी विधियों दवरा जिन प्रकार के कीटो पर नियंत्रण पाया जा सकता है उनमे आलू का बिटल,टिड्ढा ,छिलका खाने वाला कीट, फसलो पर आने वाले टिड्डे , घुन एवं सफ़ेद मक्खी आदि प्रमुख हैं।
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